Friday, February 27, 2009

शुक्र गुजारी

ये रुक कर पुराने ये सांसो का जीना यही है मदीना मदीना मदीना

-----

खजाना क्या करे संभाला नही जाता , 

निकाले जा अशरफी चैन लेता जा

जैसी है वैसी उसीकी है दुनिया 

आशिक जो ठहेरे उसीके ! करे क्या ! !

---

समजेंगे एक दिन वो शायद

 जिद में उम्र को खोया है !!

----

समजाकर शेर को मारा है , 

इसी बेवकूफी सराही नही जाती

---

शुकर रुलाकर याद दिलाया

फांसले अभी बाकि है !!

---

अरे कोई धून में खो जाना 

क्या इल्म है जालिम !!

शराबे गुमसुदा में रोकना 

क्या फक्र समजेगा !!

---

तरस खायेंगे एक दिन 

इसी आश में खोते रहे है उम्र को !

No comments:

Post a Comment