जे ओ एकबीजा ने कही नथी सकता
ते ओ लश्करों शोधे छे
चतुर राजकारणी देखो मूर्खा ओ ने जोड़े छे
एटले ज कह्यु छे कोई के
योजक तत्र दुर्लभ
दो सैन्य लड़कर जीते मरे
नेता ओ में समाधान हुआ
शहीदों अमर रहो
योजक ही सत्य है राजकारणी नही
जे ओ एकबीजा ने कही नथी सकता
ते ओ लश्करों शोधे छे
चतुर राजकारणी देखो मूर्खा ओ ने जोड़े छे
एटले ज कह्यु छे कोई के
योजक तत्र दुर्लभ
दो सैन्य लड़कर जीते मरे
नेता ओ में समाधान हुआ
शहीदों अमर रहो
योजक ही सत्य है राजकारणी नही
एक कोषी जीवन प्रकाश
बहु कोषी में साक्षी
अणुरशक्ति कही पहाड़
नथी अणु नथी घणु
ए ज तो आपणे छे
.....
एक कोषी बहुकोषि तू
बधुकोषि तू का बने
साक्षी बनी माण
क्या मरी गई छे लीला
वरस्ता ब्रह्मणे विष्णुओ थी
क्या उभरे छे शिव सागर
....
देह की खुद की गति और रिधम है।वो चलता जाता है वृक्षो की तरह।गधा,कुता,बिल्ली,मनुष्य,वानर जो भी देह मिला हो।उसके रिधम विकास जन्म मृत्यु प्रोडक्ट के हिसाब से है ।अपने सामने।आर्थिक सामाजिक दैहिक मानसिक शारीरिक वी में से कोई एक थीम से चलता है।
देह राम पीते रहो आतम रस जीवनी
ध्यानमय सब ओर भी है
ज्ञानेन जायते दर्शनम