Wednesday, September 2, 2020

साक्षी

 एक कोषी जीवन प्रकाश 

 बहु कोषी में साक्षी

 अणुरशक्ति कही पहाड़

नथी अणु नथी घणु 

 ए ज तो  आपणे छे

.....

एक कोषी  बहुकोषि तू 

बधुकोषि तू का बने

  साक्षी बनी माण

 क्या मरी गई छे लीला

वरस्ता ब्रह्मणे  विष्णुओ थी 

क्या उभरे छे शिव सागर

....

देह की खुद की गति और रिधम है।वो चलता जाता है वृक्षो की तरह।गधा,कुता,बिल्ली,मनुष्य,वानर जो भी देह मिला हो।उसके रिधम विकास जन्म मृत्यु प्रोडक्ट के हिसाब से है ।अपने सामने।आर्थिक सामाजिक दैहिक मानसिक शारीरिक  वी में से कोई एक थीम से चलता है।

देह राम पीते रहो आतम रस जीवनी 

ध्यानमय सब ओर भी है 

ज्ञानेन जायते दर्शनम


जहा माया है वही विविधा है
एकत्व आध्यात्म है
विविधा की पराकाष्ठा अनेकांत है
यहां कयामत की बात है 
और याद रहे  जैन विचार आत्मा
कृष्ण की फिलोसोफी
और संसार है
बुद्ध तो आध्यात्म है
शंकराचार्य तो आध्यात्म लीनता है





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