जो भुला जा सकता है वो ज्ञान नही है । प्रज्ञा तो अंतर्ज्ञान है ।
આકર્ષણ ગતિ
आपके कर्म और विचार रुक जाने से दुनिया रुक जाती न ही है ।
ज्ञान को सम्हालने के लिए ही स्वाध्याय है । यह अभ्यास का माहात्म्य है।अभ्यासेन तू कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।
जो जो क्षेत्रमे खो जाते है वह धीरे धीरे विशाल दिखाई देने लगता है ।..डॉक्टर
सतत बढ़ती स्मृति शिव
भविष्य तो यू ही नाश व त है
जैसे बन कर वर्तमान
हो जाता है भूतकाल
शिव प्रकाश जो उल्टा चलता है
न फैलता है
बन जाता है
जड़ स्मृति
सतत बढ़ती स्मृति
शिव
शिव
वर्तमान तो केवल साक्षी क्षण है क्या ?
या मूर्ति ?
शिवलिंग
निराकार
सत्य
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