Sunday, October 25, 2020

चिढ़ थी अज्ञानियो से

 भोगदा कीर्तिदा धनदा संसारा 

दौड़ता हरिहरन अवरोध माहे 

दौड़ती घर मुझ खाली भासे




गुरोर ज्ञानी गोपाल ज्ञानी

हरिहर प्रतिक्षणम अ ह मु नं

तन मन आतम राम तुरियं

..आत म  देह प्रकाश श्री माया

ज्ञानेन जायते रज्जु

रोगज्ञान ख़लूरगुरु


चिढ़ थी अज्ञानियो से

वोही तो मुझ गुरु बने

।।।।

देह तारो न आत  म मारो जागे चित्त गवाय

।।स्मृति जगादे जीवन

विस्मृति मरणं करे

,,,

अपमान शराब तू पिता जा


.

जीता जा तू पीता जा

मधुर का मोही प्रेम जो होइ

लूट गया कोई

जाय कहा 

कोई छाव नही,,,

बस अंतर से पायो हरिहर

अब कोई पाप न त्याग भ ई

क्या करुणा पत्थर को निपजी

पागलपन की रात भइ

...

आकर्षयेती घन ऋण गति  रुद्र  काम

अहमुन खलु तू मनसा भज राम राम

......

पत्थर प्रसन्न भये कुछ देखे

आश में उम्र बही तो चली 

...

समज समजि जाती है

समजाई नही जाती 

..अपमान करनेवाले

समशान के सिपाही

...

शायद अब न कहेंगे कुछ भी

जड़ जीवन हरि राम

याद रहे आराम वो चीज़ है जिसका आनंद श्रम करने वाला ही ले सकता है ।

बाकी शांति के लिए तो कोई श्रम की जरूर नही है ।