मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा। यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा। जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा। मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा। मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा। अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा। @कवि दीपक शर्मा http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/) इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
blog jagat men swagat hai.
ReplyDeleteswaagat hai aapkaa blog jagat mein, lehanee se aap prabhaavit karte rahenge, isee aashaa mein aapkaa mitra.
ReplyDeleteमेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
ReplyDeleteमज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/)
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.